KALPTARU

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KALPTARU (Hindi) by Gurudev Nandkishore Shrimali

KALPTARU (Hindi) by Gurudev Nandkishore ShrimaliKALPTARU (Hindi) by Gurudev Nandkishore Shrimali

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अमृत मंथन से कल्पतरु वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसे इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले आए, क्योंकि कल्पतरु सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकता है। जहाँ कामनाएँ पूर्ण होती हैं, वही स्वर्ग है; और उसे पाने के लिए अनंत काल से संघर्ष चल रहा है। देवता और दानव आपस में युद्धरत हैं स्वर्ग पर अधिकार पाने के लिए; और पृथ्वी पर मनुष्य कोशिश में लगा है कि उसकी कामनाएँ कैसे पूर्ण होंगी? कल्पतरु की सबको चाह है। इसके मिलने के बाद गालिब की तरह कहना नहीं पड़ेगा कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी…क्योंकि ख्वाहिशें-कामनाएँ पूरी हो रही हैं। वैसे भी, इंद्र इंद्रियजनित सुखों की पराकाष्ठा को निरूपित करते हैं; इसलिए उन्हें हमेशा ही तप से खतरा रहा है। इंद्र की तरह आपने भी यही समझा है कि योग और भोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। परंतु शक्ति इस नियम का अपवाद हैं। उन्होंने योगी शिव से विवाह कर उन्हें गृहस्थ बनाया है, सकल जगत् की कामनापूर्ति का उत्तरदायित्व लिया है, और फिर वही शक्ति क्षुधा, कामना रूप में हर प्राणी में स्थित है। इसलिए कल्पतरु खास है। वह विश्वास दिलाता है कि जो माँगोगे, वही मिलेगा। यह विश्वास पुरुषार्थ को जीवंत, सक्रिय कर देता है। जीवन पूर्ण लगने लगता है। ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ आओ, साकार करें उपनिषद् की यह शांति प्रार्थना कल्पतरु के सान्निध्य में।.

Gurudev Nandkishore Shrimali(AUTHOR)

गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली निखिल मंत्र विज्ञान के संस्थापक हैं। जोधपुर (राजस्थान) इनकी कर्मभूमि है। उन्होंने चार दशक पूर्व अपने परमपूज्य पिता सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों को साहित्य और सम्मेलनों के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाने का कार्य आरंभ किया था।सद्गुरुदेव शक्तिपात, दीक्षा-संस्कार और साधना प्रवचनों द्वारा शिष्यों में तपोबल की ऊर्जा प्रदान करते हैं। शक्तिपात साधक के अंदर एक क्रांति का सूत्रपात है और इस मानस क्रांति से साधक कर्म संन्यास के माध्यम से अपने भौतिक जीवन के सभी आयामों को प्राप्त करता है।सद्गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली के जीवन का लक्ष्य वैदिक ज्ञान को उसके गरिमामय आसन पर सकल भारतवर्ष में पुनर्स्थापित करना है, जिससे मनुष्य मात्र अपने जीवन में शिवत्व को अनुभव कर सके एवं उसका जीवन संताप मुक्त हो सके। यह कार्य सद्गुरुदेव अपने विचारों को मासिक पत्रिका ‘निखिल मंत्र विज्ञान’ के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाकर संपादित कर रहे हैं।

अन्य प्रसिद्ध कृतियां। (Click & Buy)

Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (27 March 2021); Prabhat Prakashan Pvt. Ltd., 4/19, Asaf Ali Raod, New Delhi-110002 (PH: 7827007777) Email: [email protected]
Language ‏ : ‎ Hindi
Hardcover ‏ : ‎ 200 pages
ISBN-10 ‏ : ‎ 9390366682
ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9390366682
Item Weight ‏ : ‎ 395 g
Dimensions ‏ : ‎ 13.97 x 1.6 x 21.59 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
Importer ‏ : ‎ Prabhat Prakashan Pvt. Ltd., 4/19, Asaf Ali Raod, New Delhi-110002
Packer ‏ : ‎ PH: 7827007777
Generic Name ‏ : ‎ Book

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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अमृत मंथन से कल्पतरु वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसे इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले आए, क्योंकि कल्पतरु सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकता है। जहाँ कामनाएँ पूर्ण होती हैं, वही स्वर्ग है; और उसे पाने के लिए अनंत काल से संघर्ष चल रहा है। देवता और दानव आपस में युद्धरत हैं स्वर्ग पर अधिकार पाने के लिए; और पृथ्वी पर मनुष्य कोशिश में लगा है कि उसकी कामनाएँ कैसे पूर्ण होंगी? कल्पतरु की सबको चाह है। इसके मिलने के बाद गालिब की तरह कहना नहीं पड़ेगा कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी…क्योंकि ख्वाहिशें-कामनाएँ पूरी हो रही हैं। वैसे भी, इंद्र इंद्रियजनित सुखों की पराकाष्ठा को निरूपित करते हैं; इसलिए उन्हें हमेशा ही तप से खतरा रहा है। इंद्र की तरह आपने भी यही समझा है कि योग और भोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। परंतु शक्ति इस नियम का अपवाद हैं। उन्होंने योगी शिव से विवाह कर उन्हें गृहस्थ बनाया है, सकल जगत् की कामनापूर्ति का उत्तरदायित्व लिया है, और फिर वही शक्ति क्षुधा, कामना रूप में हर प्राणी में स्थित है। इसलिए कल्पतरु खास है। वह विश्वास दिलाता है कि जो माँगोगे, वही मिलेगा। यह विश्वास पुरुषार्थ को जीवंत, सक्रिय कर देता है। जीवन पूर्ण लगने लगता है। ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ आओ, साकार करें उपनिषद् की यह शांति प्रार्थना कल्पतरु के सान्निध्य में।.

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गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली निखिल मंत्र विज्ञान के संस्थापक हैं। जोधपुर (राजस्थान) इनकी कर्मभूमि है। उन्होंने चार दशक पूर्व अपने परमपूज्य पिता सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों को साहित्य और सम्मेलनों के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाने का कार्य आरंभ किया था।सद्गुरुदेव शक्तिपात, दीक्षा-संस्कार और साधना प्रवचनों द्वारा शिष्यों में तपोबल की ऊर्जा प्रदान करते हैं। शक्तिपात साधक के अंदर एक क्रांति का सूत्रपात है और इस मानस क्रांति से साधक कर्म संन्यास के माध्यम से अपने भौतिक जीवन के सभी आयामों को प्राप्त करता है।सद्गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली के जीवन का लक्ष्य वैदिक ज्ञान को उसके गरिमामय आसन पर सकल भारतवर्ष में पुनर्स्थापित करना है, जिससे मनुष्य मात्र अपने जीवन में शिवत्व को अनुभव कर सके एवं उसका जीवन संताप मुक्त हो सके। यह कार्य सद्गुरुदेव अपने विचारों को मासिक पत्रिका ‘निखिल मंत्र विज्ञान’ के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाकर संपादित कर रहे हैं।

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Dimensions ‏ : ‎ 13.97 x 1.6 x 21.59 cm
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