Madhushala
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हरिवंशराय बच्च्न का संक्षिप्त जीवन परिचय और उनकी कालजयी कृतियाँ
हरिवंशराय बच्च्न का संक्षिप्त जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयाग में हुआ था। एक कवि जिसने ‘दुनिया’ को बताया कि ‘दुनिया’ के अंदर भी एक ‘दुनिया’ है। हरिवंश राय बच्चन यानी हरिवंश राय श्रीवास्तव, यानी हिंदी साहित्य के लोकप्रिय नामों में से एक नाम। यानी मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता। यानी हिंदी की सबसे लोकप्रिय रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता। ऐसे न जाने कितने ‘यानी’ हरिवंश राय बच्चन के नाम के साथ लगते जाएंगे, लेकिन उनकी शख्सियत के विशेषण कम नहीं होंगे। सीधे शब्दों में कहें तो हरिवंश राय बच्चन हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवियों में एक हैं।
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनकी शिक्षा म्यूनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला, गवर्न्मेंट कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम॰ए॰ किया और 1941 से 1952 तक वे उसी विश्ववियालय में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे। इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1952 से 1954 तक अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू॰बी॰ यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच.डी.(Ph.D) पूरी की थी। विदेश से लौटकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर तथा कुछ मास आकाशवाणी, इलाहाबाद में काम किया। फिर सोलह वर्ष दिल्ली में रहे – दस वर्ष भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर और अनन्तर छह वर्ष राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे।
बच्चन का सबसे पहला कविता संग्रह ‘तेरा हार’ 1929 में आया था लेकिन उन्हें पहचान लोकप्रिय कविता संग्रह ‘मधुशाला’ से मिली। यह कविता संग्रह 1935 में दुनिया से रूबरू हुआ। इस रचना ने अपने जमाने में कविता का शौक रखने वालों को अपना दीवाना बना दिया था।मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रुबाइयाँ से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रुबाइयाँ को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। मधुशाला की रचना के कारण श्री बच्चन को “हालावाद का पुरोधा” भी कहा जाता है।
उनकी कृति दो चट्टानें को 1968 में हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की। बिड़ला फ़ाउंडेशन ने 1991 में उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
18 जनवरी 2003 को 95 साल की उम्र में वे मुंबई में अपनी देह को अलविदा कह दिए, लेकिन उनकी कविताएं आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में धड़कती हैं।
मधुशाला : मधुशाला हरिवंश राय बच्च्न का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रुबाइयाँ(यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी साहित्य की अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफ़ीवाद का दर्शन होता है। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
निशा निमंत्रण : निशा निमंत्रण हरिवंश राय बच्च्न के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन 1938 ई० में हुआ। ये गीत 13-13 पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। ये गीत शैली और गठन की दृष्टि से अतुलनीय है। नितान्त एकाकीपन की स्थिति में लिखी गईं ये त्रयोदशपदियाँ अनुभूति की दृष्टि से वैसी ही सघन हैं जैसी भाषा शिल्प की दृष्टि से परिष्कृत। संकलन के सभी गीत स्वतंत्र हैं फिर भी प्रत्येक की रचना का गठन एक मूल भाव से अनुशासित है। पहला गीत “दिन जल्दी जल्दी ढलता है” से प्रारम्भ होकर “निशा निमंत्रण” रात्रि की निस्तब्धता के बड़े सघन चित्र करता हुआ प्रातःकालीन प्रकअश में समाप्त होता है। प्रत्येक दृष्टि से निशा निमंत्रण के गीत उच्चकोटि के हैं और बच्चन का कवि अपने चरम पर पहुँच गया प्रतीत होता है।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
क्या भूलूं क्या याद करूँ : क्या भूलूं क्या याद करूँ 1969 में प्रकाशित हरिवंश राय बच्च्न की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। इसके लिए बच्चनजी को 1991 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार तीन लाख के ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मनित भी किया जा चुका है। निस्संदेह बच्च्न की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणिति है।
डॉ॰ धर्मवीर भारती के अनुसार, ‘यह हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना जिसमें अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया गया है।’ डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, ‘इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है।’ डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में, ‘ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।’ रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार, ‘हिंदी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा स्थान है।’
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
नीड़ का निर्माण फिर : 1970 में प्रकाशित उनका यह दूसरा भाग युवाकाल के आरम्भिक कठोर संघर्ष के बाद जीवन तथा साहित्य में स्वयं को पुनःस्थापित करने के प्रयत्नों की रोमांचक कहानी है साथ ही कवि और उसके काव्य-संसार की जीवनयात्रा भी।
बसेरे से दूर : 1971-72 और 1976-77 में लिखित आत्मकथा का यह तीसरा खंड है। इस खंड को पहले ‘हंस का पश्चिम प्रवास’ नाम दिया गया था। इस खंड में अपने देश-नगर, घर-परिवार से दूर जाकर जब वे इंग्लैंड रह रहे थे और वहाँ जो भी उन्होंने लिखा-पढ़ा, देखा-सुना, जाना-पहचाना, भोगा-सहा, अनुभव-अवगत किया उसे ही इस खंड में विस्तार से लिखा है।
दशद्वार से सोपान तक : 1983-85 में लिखित आत्मकथा का यह चौथा खंड है। दशद्वार का शाब्दिक अर्थ ‘जिसमें दस दरवाज़े हों’ और सोपान का अर्थ ‘सीढ़ी’ है। इस आत्मकथा का नामकरण उनके दो घरों के नाम पर है। इलाहाबाद में क्लाइव रोड पर जिस किराए के मकान में रहते थे उनका नामकरण बच्चन जी ने दशद्वार किया था और सातवें दशक में जब नयी दिल्ली आए तो वहाँ गुलमोहर पार्क में अपने मकान का नाम उन्होंने सोपान रखा।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
मधुबाला : सन 1934-35 में लिखित इस काव्यसंग्रह में कुल सोलह अध्याय हैं। जिन दिनों इसे लिखा जा रहा था उन दिनों छायावाद का विरोध हो रहा था और प्रगतिवाद की चर्चा हो रही थी और बच्चन जी की इस कृति का भी विरोध हुआ और इसपर क्रोध प्रकट किया गया था।
मधुकलश : मधुकलश की कविताएँ सन 1935-36 में लिखी गयीं और 1937 में सर्वप्रथम प्रकाशित हुईं। इस काव्यसंग्रह में कुल बारह अध्याय हैं।
उन्होंने बच्चों के लिए भी बंदर बाँट, जन्मदिन की भेंट, नीली चिड़िया आदि पुस्तकें भी लिखी।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
मधुशाला : मधुशाला हरिवंश राय बच्च्न का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रुबाइयाँ(यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी साहित्य की अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफ़ीवाद का दर्शन होता है। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
निशा निमंत्रण : निशा निमंत्रण हरिवंश राय बच्च्न के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन 1938 ई० में हुआ। ये गीत 13-13 पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। ये गीत शैली और गठन की दृष्टि से अतुलनीय है। नितान्त एकाकीपन की स्थिति में लिखी गईं ये त्रयोदशपदियाँ अनुभूति की दृष्टि से वैसी ही सघन हैं जैसी भाषा शिल्प की दृष्टि से परिष्कृत। संकलन के सभी गीत स्वतंत्र हैं फिर भी प्रत्येक की रचना का गठन एक मूल भाव से अनुशासित है। पहला गीत “दिन जल्दी जल्दी ढलता है” से प्रारम्भ होकर “निशा निमंत्रण” रात्रि की निस्तब्धता के बड़े सघन चित्र करता हुआ प्रातःकालीन प्रकअश में समाप्त होता है। प्रत्येक दृष्टि से निशा निमंत्रण के गीत उच्चकोटि के हैं और बच्चन का कवि अपने चरम पर पहुँच गया प्रतीत होता है।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
क्या भूलूं क्या याद करूँ : क्या भूलूं क्या याद करूँ 1969 में प्रकाशित हरिवंश राय बच्च्न की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। इसके लिए बच्चनजी को 1991 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार तीन लाख के ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मनित भी किया जा चुका है। निस्संदेह बच्च्न की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणिति है।
डॉ॰ धर्मवीर भारती के अनुसार, ‘यह हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना जिसमें अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया गया है।’ डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, ‘इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है।’ डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में, ‘ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।’ रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार, ‘हिंदी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा स्थान है।’
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
दशद्वार से सोपान तक : 1983-85 में लिखित आत्मकथा का यह चौथा खंड है। दशद्वार का शाब्दिक अर्थ ‘जिसमें दस दरवाज़े हों’ और सोपान का अर्थ ‘सीढ़ी’ है। इस आत्मकथा का नामकरण उनके दो घरों के नाम पर है। इलाहाबाद में क्लाइव रोड पर जिस किराए के मकान में रहते थे उनका नामकरण बच्चन जी ने दशद्वार किया था और सातवें दशक में जब नयी दिल्ली आए तो वहाँ गुलमोहर पार्क में अपने मकान का नाम उन्होंने सोपान रखा।
Publisher : Rajpal & Sons (Rajpal Publishing); 2015th edition (7 June 1997)
Language : Hindi
Hardcover : 80 pages
ISBN-10 : 8170283442
ISBN-13 : 978-8170283447
Item Weight : 254 g
Dimensions : 13.97 x 0.79 x 21.59 cm
₹105.0
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हरिवंशराय बच्च्न का संक्षिप्त जीवन परिचय और उनकी कालजयी कृतियाँ
हरिवंशराय बच्च्न का संक्षिप्त जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयाग में हुआ था। एक कवि जिसने ‘दुनिया’ को बताया कि ‘दुनिया’ के अंदर भी एक ‘दुनिया’ है। हरिवंश राय बच्चन यानी हरिवंश राय श्रीवास्तव, यानी हिंदी साहित्य के लोकप्रिय नामों में से एक नाम। यानी मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता। यानी हिंदी की सबसे लोकप्रिय रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता। ऐसे न जाने कितने ‘यानी’ हरिवंश राय बच्चन के नाम के साथ लगते जाएंगे, लेकिन उनकी शख्सियत के विशेषण कम नहीं होंगे। सीधे शब्दों में कहें तो हरिवंश राय बच्चन हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवियों में एक हैं।
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनकी शिक्षा म्यूनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला, गवर्न्मेंट कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम॰ए॰ किया और 1941 से 1952 तक वे उसी विश्ववियालय में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे। इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1952 से 1954 तक अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू॰बी॰ यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच.डी.(Ph.D) पूरी की थी। विदेश से लौटकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर तथा कुछ मास आकाशवाणी, इलाहाबाद में काम किया। फिर सोलह वर्ष दिल्ली में रहे – दस वर्ष भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर और अनन्तर छह वर्ष राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे।
बच्चन का सबसे पहला कविता संग्रह ‘तेरा हार’ 1929 में आया था लेकिन उन्हें पहचान लोकप्रिय कविता संग्रह ‘मधुशाला’ से मिली। यह कविता संग्रह 1935 में दुनिया से रूबरू हुआ। इस रचना ने अपने जमाने में कविता का शौक रखने वालों को अपना दीवाना बना दिया था।मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रुबाइयाँ से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रुबाइयाँ को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। मधुशाला की रचना के कारण श्री बच्चन को “हालावाद का पुरोधा” भी कहा जाता है।
उनकी कृति दो चट्टानें को 1968 में हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की। बिड़ला फ़ाउंडेशन ने 1991 में उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
18 जनवरी 2003 को 95 साल की उम्र में वे मुंबई में अपनी देह को अलविदा कह दिए, लेकिन उनकी कविताएं आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में धड़कती हैं।
मधुशाला : मधुशाला हरिवंश राय बच्च्न का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रुबाइयाँ(यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी साहित्य की अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफ़ीवाद का दर्शन होता है। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
निशा निमंत्रण : निशा निमंत्रण हरिवंश राय बच्च्न के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन 1938 ई० में हुआ। ये गीत 13-13 पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। ये गीत शैली और गठन की दृष्टि से अतुलनीय है। नितान्त एकाकीपन की स्थिति में लिखी गईं ये त्रयोदशपदियाँ अनुभूति की दृष्टि से वैसी ही सघन हैं जैसी भाषा शिल्प की दृष्टि से परिष्कृत। संकलन के सभी गीत स्वतंत्र हैं फिर भी प्रत्येक की रचना का गठन एक मूल भाव से अनुशासित है। पहला गीत “दिन जल्दी जल्दी ढलता है” से प्रारम्भ होकर “निशा निमंत्रण” रात्रि की निस्तब्धता के बड़े सघन चित्र करता हुआ प्रातःकालीन प्रकअश में समाप्त होता है। प्रत्येक दृष्टि से निशा निमंत्रण के गीत उच्चकोटि के हैं और बच्चन का कवि अपने चरम पर पहुँच गया प्रतीत होता है।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
क्या भूलूं क्या याद करूँ : क्या भूलूं क्या याद करूँ 1969 में प्रकाशित हरिवंश राय बच्च्न की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। इसके लिए बच्चनजी को 1991 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार तीन लाख के ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मनित भी किया जा चुका है। निस्संदेह बच्च्न की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणिति है।
डॉ॰ धर्मवीर भारती के अनुसार, ‘यह हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना जिसमें अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया गया है।’ डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, ‘इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है।’ डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में, ‘ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।’ रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार, ‘हिंदी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा स्थान है।’
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
नीड़ का निर्माण फिर : 1970 में प्रकाशित उनका यह दूसरा भाग युवाकाल के आरम्भिक कठोर संघर्ष के बाद जीवन तथा साहित्य में स्वयं को पुनःस्थापित करने के प्रयत्नों की रोमांचक कहानी है साथ ही कवि और उसके काव्य-संसार की जीवनयात्रा भी।
बसेरे से दूर : 1971-72 और 1976-77 में लिखित आत्मकथा का यह तीसरा खंड है। इस खंड को पहले ‘हंस का पश्चिम प्रवास’ नाम दिया गया था। इस खंड में अपने देश-नगर, घर-परिवार से दूर जाकर जब वे इंग्लैंड रह रहे थे और वहाँ जो भी उन्होंने लिखा-पढ़ा, देखा-सुना, जाना-पहचाना, भोगा-सहा, अनुभव-अवगत किया उसे ही इस खंड में विस्तार से लिखा है।
दशद्वार से सोपान तक : 1983-85 में लिखित आत्मकथा का यह चौथा खंड है। दशद्वार का शाब्दिक अर्थ ‘जिसमें दस दरवाज़े हों’ और सोपान का अर्थ ‘सीढ़ी’ है। इस आत्मकथा का नामकरण उनके दो घरों के नाम पर है। इलाहाबाद में क्लाइव रोड पर जिस किराए के मकान में रहते थे उनका नामकरण बच्चन जी ने दशद्वार किया था और सातवें दशक में जब नयी दिल्ली आए तो वहाँ गुलमोहर पार्क में अपने मकान का नाम उन्होंने सोपान रखा।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
मधुबाला : सन 1934-35 में लिखित इस काव्यसंग्रह में कुल सोलह अध्याय हैं। जिन दिनों इसे लिखा जा रहा था उन दिनों छायावाद का विरोध हो रहा था और प्रगतिवाद की चर्चा हो रही थी और बच्चन जी की इस कृति का भी विरोध हुआ और इसपर क्रोध प्रकट किया गया था।
मधुकलश : मधुकलश की कविताएँ सन 1935-36 में लिखी गयीं और 1937 में सर्वप्रथम प्रकाशित हुईं। इस काव्यसंग्रह में कुल बारह अध्याय हैं।
उन्होंने बच्चों के लिए भी बंदर बाँट, जन्मदिन की भेंट, नीली चिड़िया आदि पुस्तकें भी लिखी।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
मधुशाला : मधुशाला हरिवंश राय बच्च्न का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रुबाइयाँ(यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी साहित्य की अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफ़ीवाद का दर्शन होता है। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
निशा निमंत्रण : निशा निमंत्रण हरिवंश राय बच्च्न के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन 1938 ई० में हुआ। ये गीत 13-13 पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। ये गीत शैली और गठन की दृष्टि से अतुलनीय है। नितान्त एकाकीपन की स्थिति में लिखी गईं ये त्रयोदशपदियाँ अनुभूति की दृष्टि से वैसी ही सघन हैं जैसी भाषा शिल्प की दृष्टि से परिष्कृत। संकलन के सभी गीत स्वतंत्र हैं फिर भी प्रत्येक की रचना का गठन एक मूल भाव से अनुशासित है। पहला गीत “दिन जल्दी जल्दी ढलता है” से प्रारम्भ होकर “निशा निमंत्रण” रात्रि की निस्तब्धता के बड़े सघन चित्र करता हुआ प्रातःकालीन प्रकअश में समाप्त होता है। प्रत्येक दृष्टि से निशा निमंत्रण के गीत उच्चकोटि के हैं और बच्चन का कवि अपने चरम पर पहुँच गया प्रतीत होता है।
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
क्या भूलूं क्या याद करूँ : क्या भूलूं क्या याद करूँ 1969 में प्रकाशित हरिवंश राय बच्च्न की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। इसके लिए बच्चनजी को 1991 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार तीन लाख के ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मनित भी किया जा चुका है। निस्संदेह बच्च्न की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणिति है।
डॉ॰ धर्मवीर भारती के अनुसार, ‘यह हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना जिसमें अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया गया है।’ डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, ‘इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है।’ डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में, ‘ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।’ रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार, ‘हिंदी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा स्थान है।’
हरिवंशराय बच्च्न की कालजयी कृतियाँ
दशद्वार से सोपान तक : 1983-85 में लिखित आत्मकथा का यह चौथा खंड है। दशद्वार का शाब्दिक अर्थ ‘जिसमें दस दरवाज़े हों’ और सोपान का अर्थ ‘सीढ़ी’ है। इस आत्मकथा का नामकरण उनके दो घरों के नाम पर है। इलाहाबाद में क्लाइव रोड पर जिस किराए के मकान में रहते थे उनका नामकरण बच्चन जी ने दशद्वार किया था और सातवें दशक में जब नयी दिल्ली आए तो वहाँ गुलमोहर पार्क में अपने मकान का नाम उन्होंने सोपान रखा।
Publisher : Rajpal & Sons (Rajpal Publishing); 2015th edition (7 June 1997)
Language : Hindi
Hardcover : 80 pages
ISBN-10 : 8170283442
ISBN-13 : 978-8170283447
Item Weight : 254 g
Dimensions : 13.97 x 0.79 x 21.59 cm
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