Meghna । मेघना

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kusumkusum

कुसुम गोस्वामी का लेखन

आपकी पहली हिंदी कहानी 2015 में मासिक पत्रिका फैमिना में आई थी। उसके बाद आप लगातार पत्र-पत्रिकाओं में लिखती रहीं। फिर आपकी पहली किताब में इतनी देरी की वजह?

किसी ने ख़ूब कहा है वक़्त से पहले और क़िस्मत से ज़्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। शायद वक़्त को मेरा और मुझे सही वक़्त का इंतज़ार था। क़लम भी छुरी की तरह है सारे राज़ दिल के कुरेद देती है इसलिए उसकी धार पैनी होनी बेहद ज़रूरी है, वही मैं कर रही थी।

एक लेखक की क़लम की धार पैनी कैसे हो सकती है?

ज्ञान के पाषाण पर तराश कर। ये ज्ञान का स्रोत हमें किताबों में लबालब भरा मिलेगा। इसलिए पढ़ते रहिए; लिखना अपने आप आ जाएगा।

आप कहती हैं पहली किताब लेखक के पहले प्रेम के तुल्य होती है लेकिन पाठक ‘मेघना’ से जुड़ाव कैसे महसूस करेंगे?

ये किताब उन्हीं के लिए लिखी गई है कहानी उन्हीं के बीच की, पात्र उन्हीं के अपने हैं तो स्वतः जुड़ाव संभव है। आप एक सुलभ घरेलू महिला हैं या कामकाजी स्त्री हैं, एक माँ, बेटी, पत्नी, बहन, सखी या पति, प्रेमी, पिता भाई; कोई भी हों ज़िंदगी में कभी न कभी पुलिस से और बहुतों का तो अदालत से मतलब वास्ता पड़ता ही है। और पड़े भी क्यों न क्योंकि राम हैं तो रावण भी है, सीता हैं तो शूर्पणखा भी हैं, कौशल्या हैं तो मंथरा भी हैं। मतलब रामायण के सारे पात्र युगों से दुनिया के रंगमंच पर जीवन-मरण का खेला खेलते आ रहे हैं। हम भी हिस्सा हैं ऐसे अनेक क़िस्सों-किंदवंतियों का। बस इन्हीं रंगमचों की आधारशिला है मेरी किताब- ‘मेघना’।

kusumkusum

किताब का नाम किरदार के कंधों पर; आपके पास बाकी विकल्प भी थे फिर ‘मेघना’ पर विश्वास की इतनी वजह?

आप एक बार पढ़ेंगे तो आपको यक़ीन हो जाएगा मेरे इस विश्वास की वजह। वो है ही इतनी सक्षम कि कुछ और न जँचता न रुचता।

क्या ‘मेघना’ एक नारी प्रधान कहानी है?

नारी हमारे समाज की धुरी है उसके बिना हर कहानी अधूरी है और वो सबके बिना अधूरी है, मेरी ‘मेघना’ पूरी है। इसमें आपको नारी और पुरुष के पूज्य से लेकर तुच्छ तक सारे रूप देखने को मिलेंगे। कुछ रहस्य हैं जो उजागर होने के बाद पता चलते हैं कि वे राज़ थे ऐसे ही अनगिनत रहस्य हमारी ज़िंदगी में भी उजागर न होने की वजह से आमतौर पर चिपके रहते हैं।

kusumkusum

क्या लेखन में एक महिला को पुरुष से ज़्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

ज़्यादा तो नहीं पर दोनों की चुनौतियाँ किंचित भिन्न तो हैं ही। जहाँ एक पुरुष घर आकर कुछ घंटों के लिए ख़ुद को बाक़ी दुनिया से कट कर बैठ सकता है वहीं ये काम एक घरेलू या कामकाजी दोनों महिलाओं के लिए थोड़ा मुश्किल होता है जो लिखावट में, कहानी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करता है। कई बार कहानी को वहाँ से पकड़ भी नहीं पाते जहाँ छोड़ा होता है वो चौके बर्तन में, कभी बच्चों की किताब तो कभी उनकी किलकार में गुम हो जाती है। फिर भी परिवार का साथ मिले तो सभी मुश्किलें आसान हो जाती हैं। जैसे एक सफल पुरुष के पीछे स्त्री का हाथ होता है, मेरा मानना है एक सफल स्त्री के पीछे भी एक सहायक पुरुष होता है। मतलब एक-दूसरे की सफलता में एक-दूसरे का हाथ और साथ होता है।

Publisher ‏ : ‎ Hind Yugm; First edition (22 February 2021); C-31, Sector-20, Noida (UP)-201301. Ph-0120-4374046, website- hindyugm.com
Language ‏ : ‎ Hindi
Paperback ‏ : ‎ 197 pages
ISBN-10 ‏ : ‎ 8194844398
ISBN-13 ‏ : ‎ 978-8194844396
Item Weight ‏ : ‎ 150 g
Dimensions ‏ : ‎ 19.8 x 1.1 x 12.9 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
Importer ‏ : ‎ Hind Yugm, C-31, Sector-20, Noida (UP)-201301. Ph-0120-4374046
Packer ‏ : ‎ Hind Yugm, C-31, Sector-20, Noida (UP)-201301. Ph-0120-4374046
Generic Name ‏ : ‎ Book

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कुसुम गोस्वामी का लेखन

आपकी पहली हिंदी कहानी 2015 में मासिक पत्रिका फैमिना में आई थी। उसके बाद आप लगातार पत्र-पत्रिकाओं में लिखती रहीं। फिर आपकी पहली किताब में इतनी देरी की वजह?

किसी ने ख़ूब कहा है वक़्त से पहले और क़िस्मत से ज़्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। शायद वक़्त को मेरा और मुझे सही वक़्त का इंतज़ार था। क़लम भी छुरी की तरह है सारे राज़ दिल के कुरेद देती है इसलिए उसकी धार पैनी होनी बेहद ज़रूरी है, वही मैं कर रही थी।

एक लेखक की क़लम की धार पैनी कैसे हो सकती है?

ज्ञान के पाषाण पर तराश कर। ये ज्ञान का स्रोत हमें किताबों में लबालब भरा मिलेगा। इसलिए पढ़ते रहिए; लिखना अपने आप आ जाएगा।

आप कहती हैं पहली किताब लेखक के पहले प्रेम के तुल्य होती है लेकिन पाठक ‘मेघना’ से जुड़ाव कैसे महसूस करेंगे?

ये किताब उन्हीं के लिए लिखी गई है कहानी उन्हीं के बीच की, पात्र उन्हीं के अपने हैं तो स्वतः जुड़ाव संभव है। आप एक सुलभ घरेलू महिला हैं या कामकाजी स्त्री हैं, एक माँ, बेटी, पत्नी, बहन, सखी या पति, प्रेमी, पिता भाई; कोई भी हों ज़िंदगी में कभी न कभी पुलिस से और बहुतों का तो अदालत से मतलब वास्ता पड़ता ही है। और पड़े भी क्यों न क्योंकि राम हैं तो रावण भी है, सीता हैं तो शूर्पणखा भी हैं, कौशल्या हैं तो मंथरा भी हैं। मतलब रामायण के सारे पात्र युगों से दुनिया के रंगमंच पर जीवन-मरण का खेला खेलते आ रहे हैं। हम भी हिस्सा हैं ऐसे अनेक क़िस्सों-किंदवंतियों का। बस इन्हीं रंगमचों की आधारशिला है मेरी किताब- ‘मेघना’।

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किताब का नाम किरदार के कंधों पर; आपके पास बाकी विकल्प भी थे फिर ‘मेघना’ पर विश्वास की इतनी वजह?

आप एक बार पढ़ेंगे तो आपको यक़ीन हो जाएगा मेरे इस विश्वास की वजह। वो है ही इतनी सक्षम कि कुछ और न जँचता न रुचता।

क्या ‘मेघना’ एक नारी प्रधान कहानी है?

नारी हमारे समाज की धुरी है उसके बिना हर कहानी अधूरी है और वो सबके बिना अधूरी है, मेरी ‘मेघना’ पूरी है। इसमें आपको नारी और पुरुष के पूज्य से लेकर तुच्छ तक सारे रूप देखने को मिलेंगे। कुछ रहस्य हैं जो उजागर होने के बाद पता चलते हैं कि वे राज़ थे ऐसे ही अनगिनत रहस्य हमारी ज़िंदगी में भी उजागर न होने की वजह से आमतौर पर चिपके रहते हैं।

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क्या लेखन में एक महिला को पुरुष से ज़्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

ज़्यादा तो नहीं पर दोनों की चुनौतियाँ किंचित भिन्न तो हैं ही। जहाँ एक पुरुष घर आकर कुछ घंटों के लिए ख़ुद को बाक़ी दुनिया से कट कर बैठ सकता है वहीं ये काम एक घरेलू या कामकाजी दोनों महिलाओं के लिए थोड़ा मुश्किल होता है जो लिखावट में, कहानी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करता है। कई बार कहानी को वहाँ से पकड़ भी नहीं पाते जहाँ छोड़ा होता है वो चौके बर्तन में, कभी बच्चों की किताब तो कभी उनकी किलकार में गुम हो जाती है। फिर भी परिवार का साथ मिले तो सभी मुश्किलें आसान हो जाती हैं। जैसे एक सफल पुरुष के पीछे स्त्री का हाथ होता है, मेरा मानना है एक सफल स्त्री के पीछे भी एक सहायक पुरुष होता है। मतलब एक-दूसरे की सफलता में एक-दूसरे का हाथ और साथ होता है।

Publisher ‏ : ‎ Hind Yugm; First edition (22 February 2021); C-31, Sector-20, Noida (UP)-201301. Ph-0120-4374046, website- hindyugm.com
Language ‏ : ‎ Hindi
Paperback ‏ : ‎ 197 pages
ISBN-10 ‏ : ‎ 8194844398
ISBN-13 ‏ : ‎ 978-8194844396
Item Weight ‏ : ‎ 150 g
Dimensions ‏ : ‎ 19.8 x 1.1 x 12.9 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
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